Electric Charge (विद्युत आवेश)

 

विद्युत आवेश

भूमिका (Introduction)

जब किसी शुष्क दिन एक प्लास्टिक के स्केल या कंधे को सूखे बालों से रगड़कर मेज पर पड़े छोटे-छोटे कागज के टुकड़ों के पास लाते है तब कागज के टुकड़े स्केल अथवा कंधे की ओर आकर्षित होते हैं। इस प्रकार दो वस्तुओं को पररपर रगड़ने पर उनमें कभी-कभी ऐसा गुण आ जाता है जिससे वे अपने समीप स्थित हल्की वस्तुओं को आकर्षित करने लगती है। यह विद्युत आवेश के उत्पन्न होने के कारण होता है।

विद्युत आवेश (Electric charge)

इतिहास:-

लगभग 600 ईसा पूर्व ग्रीस देश के मिलेटस के वैज्ञानिक थेल्स (Thales) ने ज्ञात किया कि ऐम्बर (Amber) नामक पदार्थ (ऐम्बर पीले रंग का एक रेजिनी पदार्थ (Resinous Substance) है जो बाल्टिक सागर के किनारे पाया जाता है ) को ऊन से रगड़ने पर उसमें कागज के छोटे-छोटे टुकड़े, तिनकों आदि को आकर्षित करने का गुण आ जाता है। ऐम्बर को यूनानी भाषा में इलेक्ट्रॉन (electron) कहते हैं। अतः उपर्युक्त घटना के कारण को इलेक्ट्रिसिटी नाम दिया गया। इसी इलेक्ट्रिसिटी का हिन्दी रूपान्तरण विद्युत है।

सन् 1600 में दूसरे वैज्ञानिक गिल्बर्ट ने देखा कि ऐसे अन्य कई पदार्थ जैसे काँच, एबोनाइट, राल्फर आदि है जो ऐम्बर की तरह ही न्यूनाधिक मात्रा में हल्की वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पदार्थों में अन्य हल्के पदार्थों को अपनी ओर आकर्षित करने का यह गुण रगड़े जाने अर्थात् घर्षण के कारण आता है। पदार्थों में इस गुण के आ जाने पर पदार्थ विद्युन्मय (electrified) या आवेशित (charged) कहलाता है तथा वह कारक जिससे यह गुण पदार्थों में आ जाता है, विद्युत कहलाता है।

विद्युत आवेश पदार्थ का वह गुण है जिसके कारण वह विद्युत तथा चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न करता है अथवा इनका अनुभव करता है  |

विद्युत:- भौतिकी की वह शाखा, जिसके अन्तर्गत स्थिर आवेशों के गुणों तथा उनसे सम्बन्धित घटनाओं का अध्ययन किया जाता है, स्थिर विद्युत (Static electricity) कहलाती है जबकि वह शाखा, जिसके अन्तर्गत गतिमान आवेशों के गुणों तथा उनसे सम्बन्धित घटनाओं का अध्ययन किया जाता है, धारा विद्युत (current clectricity) कहलाती है।

स्थिर विधुतिकी का सैद्धान्तिक दृष्टि के साथ-साथ कई अनुप्रयोग जैसे छायाप्रति मशीन (Photostat Machine ), कम्प्यूटर प्रिंटर, स्थिर विद्युत स्मृति (Electrostatic memory), भूकम्पलेखी (Seismograph) आदि भी है।

आवेश की उपस्थिति का प्रयोग(Experiment of existence of charge)

यदि हम काँच की छड़ को रेशम से रगड़ें तो छड़ आवेशित हो जाती है। इसी प्रकार एबोनाइट की छड़ बिल्ली की खाल से रगड़ी जाने पर आवेशित हो जाती है। परन्तु इन दोनों छड़ों के आवेश एक दूसरे से भिन्न प्रकार के होते हैं। यदि हम काँच की छड़ को रेशम से रगड़ कर एक डोरे से लटका दें तथा एक दूसरी काँच की छड़ को रेशम से रगड़कर  पहली छड़ के पास लायें तो लटकी हुई छड़ दूर हट जाती है इसी प्रकार, यदि एबोनाइट की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ कर लटका  दें तथा दूसरी एबोनाइट की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ कर पहली के पास लायें तो भी लटकी हुई छड़ दूर हट जाती है। परन्तु यदि हम एबोनाइट की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ कर लटका दें तथा काँच की छड़ को रेशम से रगड़ कर एबोनाइट की छड़ के पास लायें तो एबोनाइट की छड़ काँच की छड़ की ओर खिंच आती है।

आवेश के प्रकार(Types of Charge):- इन प्रयोगों से स्पष्ट होता है कि आवेश दो प्रकार के होते हैं एक तो वह जो काँच को रेशम से रगड़ने पर काँच में उत्पन्न होता है तथा दूसरा वह जो कि एबोनाइट को बिल्ली की खाल से रगड़ने पर एबोनाइट में उत्पन्न होता है। पहले को 'धन आवेश' (positive charge) तथा दूसरे को 'ऋण आवेश' (Negative charge) कहते हैं।

ये नाम अमरीकी वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रैंकलिन ने सन् 1750 में रखे थे। वह गुण जो दोनों प्रकार के आवेशों में भेद करता है, आवेश की (Polarity) ध्रुवता कहलाता है। उपरोक्त प्रयोगों से यह भी स्पष्ट है कि "समान प्रकृति के आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित (repel) करते हैं तथा विपरीत प्रकृति के आवेश एक दूसरे को आकर्षित (attract) करते हैं।

पदार्थ के प्रकार(Types of  substance):-

(i)चालक:-ऐसे पदार्थ जिनमें से विद्युत आवेश (सामान्यत: इलेक्ट्रॉन) का प्रवाह आसानी से हो सकता है, चालक कहलाते हैं।

जैसे- धातुएँ, पृथ्वी, मानव व जन्तु, अम्ल, क्षार आदि चालक होते हैं।

(ii)कुचलक:-ऐसे पदार्थ जिनमें से इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह आसानी से नहीं होता है, विद्युतरोधी या कुचालक पदार्थ कहलाते हैं।

जैसे- काँच, प्लास्टिक, एबोनाइट आदि विद्युतरोधी होते हैं।

(iii) परावैद्युत:-कुछ कुचालक पदार्थों पर विद्युत क्षेत्र आरोपित करने पर उनके पृष्ठों पर प्रेरित आवेश उत्पन्न हो जाते हैं। इन पदार्थों को परावैद्युत (Dielectric) पदार्थ कहते हैं।

जैसे- हवा, अभ्रक, कुचालक तेल, पूरित कागज (Impregnated paper) आदि।

विद्युत आवेश का इलेक्ट्रॉन सिद्धांत

(Electron Theory of electric charge) प्रत्येक पदार्थ परमाणुओं से मिलकर बना है। प्रत्येक परमाणु का समस्त भार उसके केन्द्रीय भाग में समाहित होता है जिसे नाभिक कहते हैं। नाभिक में दो प्रकार के मौलिक कण होते हैं- 1. प्रोटॉन 2. न्यूट्रॉन |

प्रोटॉन पर धन आवेश होता है जबकि न्यूट्रॉन उदासीन होता है। नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉनों पर ऋण आवेश होता है। प्रत्येक इलेक्ट्रॉन का ऋण आवेश परिमाण में प्रत्येक प्रोटॉन के धन आवेश के बराबर होता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक परमाणु में प्रोटॉनों की संख्या इलेक्ट्रॉनों की संख्या के बराबर होती है अर्थात् प्रत्येक परमाणु में धन आवेश की कुल मात्रा, ऋण आवेश की कुल मात्रा के बराबर होती है अतः परमाणु में दो विपरीत प्रकार के आवेशित कणों के विद्यमान होने के बावजूद भी परमाणु विद्युत रूप से उदासीन होता है।

जब किसी परमाणु में एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन को निकाल लिया जाता है तो वह विद्युत रूप से धन आवेशित हो जाता है. अतः एक धन आवेशित पिण्ड पर इलेक्ट्रॉनों की कमी होती है। इसी प्रकार एक ऋण आवेशित वस्तु में इलेक्ट्रॉनों की अधिकता होती है। वस्तु के आवेशित होने के लिए केवल इलेक्ट्रॉन ही उत्तरदायी होते हैं न कि प्रोटॉन । क्योंकि प्रोटॉन नाभिक में बहुत अधिक बल से बंधे होते हैं अतः उन्हें निकालना आसान नहीं है।

आवेश उत्पन्न करने की विधि(Methods to produce electricity)

घर्षण द्वारा आवेशन (Chirging by Prietion)

दो वस्तुओं को परस्पर रगड़ने पर उनके द्वारा आवेशित होने की प्रक्रिया को घर्षण विद्युत या घर्षण द्वारा आवेशन कहते हैं। जब दो वस्तुओं को परस्पर रगड़ा जाता है तब एक वस्तु के परमाणुओं से कुछ इलेक्ट्रॉन, दूसरी वस्तु में चले जाते हैं। एक वस्तु में इलेक्ट्रॉन की कमी जबकि दूसरी वस्तु में इलेक्ट्रॉन की अधिकता हो जाती है। इस प्रकार एक वस्तु धनावेशित तथा दूसरी वस्तु ऋणावेशित हो जाती है।

जब काँच की छड़ को रेशम से रगड़ते हैं तो काँच के परमाणुओं से कुछ इलेक्ट्रॉन निकल कर रेशम में चले जाते हैं. इससे काँच पर इलेक्ट्रॉनों की कमी हो जाने के कारण धन आवेश की अधिकता हो जाती है तथा रेशम पर ऋण आवेश की अधिकता हो जाती है। अतः काँच की छड़ धन आवेशित तथा रेशम ऋण आवेशित हो जाता है। इसी प्रकार जब एबोनाइट की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ते हैं तो खाल से कुछ इलेक्ट्रॉन एबोनाइट में आ जाते हैं। अतः एबोनाइट की छड़ इलेक्ट्रॉनों की अधिकता के कारण ऋण आवेशित हो जाती है तथा खाल इलेक्ट्रॉनों की कमी के कारण धन आवेशित हो जाती है।

महत्वपूर्ण तथ्य:- यदि काँच की छड़ के स्थान पर ताँबे की छड़ को हाथ में पकड़कर ऊनी कपड़े से रगड़ा जाये तब छड़ को स्थानान्तरित आवेश शरीर से स्थानान्तरित होकर से पृथ्वी में प्रवाहित होने के कारण ताँबे की छड़ आवेशित नहीं हो पाती है। अब यदि ताँबे की छड़ के लकड़ी का हत्था लगाकर उपरोक्त प्रक्रिया पुनः दोहरायी जाती है। तब छड़ आवेशित हो जाती है। इस स्थिति में लकड़ी का हत्था कुचालक होने से आवेश पृथ्वी में प्रवाहित नहीं हो पाता है।

इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान me = 9.1 x 10-31 kg होता है। सिद्धान्तः वस्तु से e हटने पर उसका द्रव्यमान घट जायेगा तथा ऋणावेश वृद्धि में e आ जाने पर द्रव्यमान बढ़ जायेगा। यद्यपि यह कमी अथवा वृद्धि अत्यल्प होती है परन्तु यह सैद्धान्तिक रूप से सही है। निम्न सारणी के प्रथम कॉलम की वस्तु और द्वितीय कॉलम की वस्तुओं में घर्षण के कारण, प्रथम पर धनात्मक और द्वितीय पर ऋणात्मक आवेश आ जाता है

धनात्मक आवेश

ऋणात्मक आवेश

काँच की छड़

रेशमी (silk) कपड़ा

बिल्ली का रोयेंदार चर्म (cat skin)

(i) ऐबोनाइट छड़ 

(ii) प्लास्टिक छड़

ऊनी कपड़ा (woollen cloth)

(i) रबर 

(ii) ऐम्बर (रेजिन)

(iii) ऐबोनाइट 

(iv) प्लास्टिक

·         आवेश धनात्मक और ऋणात्मक होता है, द्रव्यमान केवल धनात्मक ही होता है।

·         आवेश सदैव द्रव्यमान से बद्ध रहता है अर्थात् द्रव्यमान के बिना आवेश का अस्तित्व नहीं हो सकता है,

·         जबकि आवेश के बिना द्रव्यमान का अस्तित्व हो सकता है।

·         जिन कणों का विराम द्रव्यमान शून्य होता है, वे कण आवेशित नहीं हो सकते हैं, जैसे-फोटॉन अथवा न्यूट्रिनो

चालन (स्पर्श) द्वारा आवेशन|Charging by conduction (contact) :

जब किसी आवेशित चालक को किसी अनावेशित चालक के सम्पर्क में लाया जाता है, तब दोनों चालकों पर समान प्रकृति का आवेश फैल जाता है । इस प्रक्रिया को चालन द्वारा आवेशन या सम्पर्क द्वारा आवेशन कहते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि सम्पर्क बिन्दु पर कुछ इलेक्ट्रॉनों का स्थानांतरण होता है।

चित्रानुसार दो चालक वस्तुएँ कुचालक स्टैण्डों पर स्थित है। इनमें से एक वस्तु आवेशित तथा दूसरी वस्तु अनावेशित है। इन वस्तुओं को परस्पर सम्पर्क में लाने पर आवेश (धन आवेश या ऋण आवेश) स्वयं के प्रतिकर्षण के कारण दोनों वस्तुओं पर वितरित हो जाता है, जिससे दोनों वस्तुएँ समान प्रकृति के आवेश से आवेशित हो जाती है।

प्रेरण द्वारा आवेशन (Charging by Induction)

वह प्रक्रिया जिसके अन्तर्गत एक आवेशित वस्तु द्वारा अनावेशित वस्तु पर स्पर्श किए बिना विपरीत प्रकृति का आवेश उत्पन्न कर दिया जाये, प्रेरण द्वारा आवेशन कहलाती है।

(i) किसी चालक पर प्रेरण प्रभाव:- किसी चालक को प्रेरण द्वारा निम्न चरणों में आवेशित किया जा सकता है-

(a) किसी कुचालक स्टैण्ड पर रखे चालक गोले पर विचार करते हैं।

 (b) जब चालक के समीप किसी धनावेशित छड़ को जाया जाता है तब चालक के भाग P पर ऋणावेश तथा भाग Q पर धनावेश प्रेरित हो जाता है

(c) जब चालक गोले को भूसम्पर्कित किया जाता है अर्थात किसी चालक तार द्वारा पृथ्वी से सम्पर्कित किया जाता है तब पृथ्वी से चालक की ओर इलेक्ट्रॉन प्रवाहित होते है तथा चालक का Q भाग उदासीन हो जाता है जबकि बद्ध आवेश P भाग पर रहता है। चित्र (c)

(d )जब चालक गोले का पृथ्वी से सम्पर्क हटा दिया जाता है तब भी भाग P पर ऋणावेश वितरित रहता है। चित्र (d)

(e) अब आवेशित छड़ को भी हटा लेते है भाग P का ऋणावेश तुरन्त ही चालक गोले के सम्पूर्ण पृष्ठ पर वितरित हो जाता है और चालक ऋणावेशित हो जाता है। चित्र (e)

चालक गोले के समीप ऋणावेशित छड़ लाकर तथा उपर्युक्त चरणों को दोहराकर गोले को धनावेशित भी किया जा सकता है।

(ii) दो चालको द्वारा प्रेरण प्रभाव:- दो चालक गोलों के प्रेरण प्रभाव द्वारा आवेशन की प्रक्रिया का अध्ययन करते है

(a) कुचालक स्टैण्डों पर रखे दो चालक गोलों A तथा B को एक दूसरे के सम्पर्क में लाते है।

(b) जब चालक A के समीप किसी धनावेशित छड़ को लाया जाता है। तब चालक A के मुक्त इलेक्ट्रॉन छड़ की ओर आकर्षित होते है जबकि चालक B के दायें पृष्ठ पर धनावेश की अधिकता हो जाती है। ये दोनों प्रकार के आवेश गोलों में आबद्ध रहते हैं। इस प्रकार मुक्त इलेक्ट्रॉन चालक A के बांये पृष्ठ पर एकत्र हो जाते है परन्तु साथ ही अन्य इलेक्ट्रॉन इनके द्वारा प्रतिकर्षित होने लगते है। अन्त में आवेशित छड़ के आकर्षण तथा संचित आवेशों के कारण प्रतिकर्षण के मध्य साम्यावस्था की स्थिति आ जाती है। यह अवस्था तब तक ही रहती है जब तक कि आवेशित छड़ चालक गोले A के समीप रहती है। इस प्रक्रिया को आवेश का प्रेरण कहते A है।

(c) जब आवेशित छड़ को बालक गोले A के समीप रखते हुए दोनों गोलों A तथा B को एक-दूसरे से अल्प दूरी तक पृथक्कित करते  है तब दोनों गोले विपरीत प्रकृति के आवेशों द्वारा आवेशित होकर एक-दूसरे को आकर्षित करते है। चित्र (c)

(d) अब आवेशित छड़ को हटा लेते हैं। इस स्थिति में गोलों पर आवेश का वितरण चित्र (d) के अनुसार होता है।

(e) अन्त में दोनों गोलों को अधिक दूरी तक पृथक्कित करते है। इस स्थिति में दोनों गोलों पर आवेश एक समान रूप से वितरित हो जाता है। इस प्रकार दोनों गोले प्रेरण द्वारा विपरीत आवेश से आवेशित हो जाते है।

 

यही कारण है कि प्रेरण प्रभाव द्वारा किसी आवेशित छड़ को हल्की वस्तुओं के समीप लाने पर वस्तुओं के पास स्थित पृष्ठ पर विपरीत प्रकृति, आवेश तथा दूर स्थित पृष्ठ पर समान प्रकृति का आवेश प्रेरित हो जाता है। इन दोनों प्रकार के आवेशों के मध्य कुछ पृथक्कन होता है। इस स्थिति में बल के परिमाण की आवेशों के मध्य की दूरी पर निर्भरता के कारण आकर्षण बल के प्रभावी होने से हल्की वस्तुएँ आवेशित छड़ की ओर आकर्षित होने लगती है।

 

एक आवेशित (धन या ऋण) वस्तु का अनावेशित वस्तु से आकर्षण की व्याख्या- जब एक आवेशित वस्तु को अनावेशित वस्तु के समीप लाया जाता है, तब अनावेशित वस्तु का आवेशित वस्तु की ओर का सिरा विपरीत प्रकृति का आवेश प्राप्त करता है, जबकि दूर का सिरा समान प्रकृति का आवेश प्राप्त करता है। इस स्थिति में समान प्रकृति के आवेशों के मध्य यह प्रतिकर्षण अधिक दूरी के कारण दुर्बल होता है, जबकि विपरीत प्रकृति का आवेश प्रबल आकर्षित होता है जिससे आवेशित वस्तु तथा अनावेशित वस्तु में परिणामी आकर्षण बल लगता है। यही कारण है कि सूखे बालों में प्लास्टिक का कंघा घुमाने पर कंघा कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों को समीप लाने पर आकर्षित करता है।

वस्तु के आवेशन से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

1. किसी वस्तु को आवेशित करने के लिए इलेक्ट्रॉन ही उत्तरदायी है, प्रोटॉन नहीं क्योंकि प्रोटॉन को नाभिक से पृथक करना सुगम नहीं होता है।

2. यदि समान द्रव्यमान के दो समरूप धात्विक गोलों को क्रमशः समान परिमाण से धन आवेशित तथा समान परिमाण से ऋण आवेशित किया जाता है, तब उनके द्रव्यमान क्रमशः अपेक्षाकृत कम तथा अधिक होते हैं। इसका कारण यह है कि धन आवेशित गोले से इलेक्ट्रॉन निकलने से द्रव्यमान में कमी होती है, जबकि ऋण आवेशित गोले द्वारा इलेक्ट्रॉन ग्रहण किये जाने से द्रव्यमान में वृद्धि होती है। व्यवहार में यह कमी या वृद्धि नगण्य होती है।

3. प्रतिकर्षण ही विद्युतीकरण का सही परीक्षण है, क्योंकि प्रतिकर्षण केवल आवेशित वस्तुओं के मध्य होता है, जबकि आकर्षण आवेशित तथा अनावेशित दोनों वस्तुओं वस्तु के मध्य हो सकता है।

4. आवेश की उपस्थिति का संसूचन तथा मान, स्वर्णपत्र विद्युतदर्शी, इलेक्ट्रोमीटर, वोल्टामीटर तथा प्रक्षेप धारामापी द्वारा किया जा सकता है।

5. जब 0.1  से 10  तरंगदैर्ध्य परास की X-किरणें किसी धातु पृष्ठ पर आपतित होती है, तब धातु पृष्ठ से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है तथा धातु सतह धनावेशित हो जाती है।

विद्युतदर्शी (Electroscope)

यह एक सरल उपकरण है, जिसकी सहायता से किसी वस्तु पर आवेश की उपस्थिति को ज्ञात किया जाता है। इस प्रकार के उपकरणों में अत्यधिक संवेदी तथा सामान्यतः प्रयुक्त होने वाला उपकरण स्वर्ण पत्र विद्युतदर्शी (Gold leaf electroscope) होता है।

संरचना:- इसमें एक काँच के जार G में धातु की एक छड़ R ऊर्ध्वाधरतः लगी होती है। छड़ के ऊपरी सिरे पर धात्विक घुण्डी (Knob) K लगी होती है जबकि निचले सिरे पर दो स्वर्ण पत्तियाँ (Leaves) L1, L2  बँधी होती है।

कार्यविधि:- जब किसी आवेशित वस्तु को धात्विक घुण्डी के सम्पर्क में लाया जाता है तब कुछ आवेश स्वर्ण पत्तियों पर स्थानान्तरित हो जाता है तथा प्रतिकर्षण के कारण पत्तियाँ फैल जाती है। पत्तियों का फैलाव सम्पर्कित वस्तु पर आवेश की मात्रा के बारे में अनुमानित जानकारी देता है।

यदि किसी आवेशित वस्तु को पहले से आवेशित विद्युतदर्शी के समीप लाते है तथा यदि वस्तु पर आवेश एवं विद्युतदर्शी पर उपस्थित आवेश समान प्रकृति का है तो पत्तियों और अधिक फैल जाती है जबकि यदि विपरीत प्रकृति का है तो पत्तियों सामान्यतः सिकुड़ जाती है लेकिन यदि प्रेरण प्रभाव प्रबल होता है तो पत्तियाँ सिकुड़ने के बाद पुनः फैल जाती है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य:- स्वर्ण विद्युत का एक बहुत अच्छा चालक होता है। दुर्बल स्थिर विद्युत बल द्वारा भी स्वर्ण पत्र को क्रियाशील बनाया जा सकता है परन्तु स्वर्ण की कीमत अधिक होने से इसके स्थान पर एलुमिनियम की पत्तियों का उपयोग किया जाता है।

 

आवेश का मात्रक (Unit of Charge)

·         आवेश का SI पद्धति में मात्रक एम्पियर-सेकण्ड या कूलॉम होता है।

1 कूलॉम = 1 एम्पियर-सेकण्ड

1 कूलॉम की परिभाषा:- यदि किसी चालक में 1 एम्पियर विद्युत धारा 1 सेकण्ड तक प्रवाहित हो, तो उस चालक से प्रवाहित आवेश 1 कूलॉम होता है।

·         C.G.S. पद्धति में आवेश का मात्रक स्टैट कूलॉम होता है।

·         आवेश का सबसे छोटा मात्रक स्थिर विद्युत इकाई (csu) अथवा फ्रैंकलिन (Fr) होता है। यह मात्रक भी C.G.S. पद्धति में ही होता है। आवेश का विद्युत चुम्बकीय मात्रक (emu) एब-कूलॉम (ab coulomb) होता है। 1 कूलॉम = 3 x 109 esu = 3 x 109 Fr = 1/ 10 एब-कूलॉम

·         आवेश का सबसे बड़ा मात्रक फैराड़े होता है।

1 फैराड़े = 96500 कूलॉम

·         कूलॉम आवेश का बड़ा मात्रक है अतः आवेश के अन्य छोटे मात्रक भी हैं-

1 माइक्रोकूलॉम (μC) = 10-6 कूलॉम

1 नैनोकूलॉम (nC) = 10-9  कूलॉम

·         आवेश का विमीय सूत्र [ AT ]  होता है।

आवेश  के गुणधर्म (Properties of Charge)

हम जानते हैं कि आवेश दो प्रकार के होते है धनावेश तथा ऋणावेश। दोनों प्रकार के आदेशों में एक-दूसरे को निरस्त करने की प्रवृत्ति होती है। यहाँ विद्युत आवेशों के कुछ अन्य महत्वपूर्ण गुण है-

1.विद्युत आवेशों की योज्यता (Additivity of electric charges)

विद्युत आवेश एक अदिश राशि है। किसी भी निकाय में कुल आवेश उसमें उपस्थित सभी आवेशों के बीजीय योग के तुल्य होता है।

उदाहरण:- किसी निकाथ में कुल धनावेश + pe तथा कुल ऋणावेश -ne हो तो उस पर कुल आवेश (pe) + (-ne) = (p - n)e होगा,

·         यदि p> n होगा तब पदार्थ धनावेशित

·         यदि p<n होने पर पदार्थ ऋणावेशित होगा।

·         यदि किसी पदार्थ पर आवेशों का योग शून्य हो तो वह पदार्थ उदासीन कहा जाता है।

 

2. विद्युत आवेश की निश्चरता (Invariance of Electric charge

किसी वस्तु पर आवेश निर्देश तंत्र के चुनाव से स्वतंत्र होता है, अर्थात् किसी वस्तु पर आवेश उसके वेग पर निर्भर नहीं करता है, चाहे वस्तु स्थिर हो अथवा वह आपेक्षकीय वेग से गतिशील हो उसका आवेश समान रहता है। यह गुणधर्म विद्युत आवेश की निश्चरता कहलाता है। इस प्रकार

विरामावस्था में आवेश = गतिशील अवस्था में आवेश

      Qविरामावस्था = Qगतिशील अवस्था  

महत्वपूर्ण तथ्य : विशिष्ट आपेक्षिकता के सिद्धांत के अनुसार किसी वस्तु का द्रव्यमान निम्न सूत्र के अनुसार परिवर्तित होता है

      m = 

जहाँ m = गतिशील अवस्था में वस्तु का द्रव्यमान,

m0 = विरामावस्था में वस्तु का द्रव्यमान,

v = वस्तु का वेग,

c = निर्वात् में प्रकाश की चाल = 3 x 108 m/s

·         अति उच्च वेग v   ̴ c पर वस्तु का द्रव्यमान इसके विराम द्रव्यमान से कई गुना बड़ा हो जाता है, जबकि आवेश अप्रभावित रहता है।

·         किसी कण का आवेश q व द्रव्यमान m का अनुपात q/m विशिष्ट आवेश कहलाता है। यह वस्तु के वेग पर निर्भर करता है तथा अति उच्च वेग v   ̴ c पर विशिष्ट के आवेश घट जाता है।

3. विद्युत आवेश का संरक्षण(Conservation of Electric charge)

इस नियम के अनुसार, आवेश को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है, आवेश का केवल स्थानान्तरण होता है। किसी विलगित निकाय (Isolated system) में आवेश अर्थात् धन व ऋण आवेशों का बीजगणितीय योग सदैव नियत रहता है। यह किसी भी प्रक्रिया या अनुक्रिया (Process of Interaction) के सम्पन्न होने पर भी अपरिवर्तित रहता है। इसे आवेश संरक्षण का सिद्धान्त कहते हैं।

उदहारण:- जब दो पदार्थों को आपस में रगड़ा जाता है तो उन पर बराबर एवं विपरीत आवेश आ जाते हैं। जब एक काँच की छड़ को रेशम से रगड़ा जाता है तो काँच की छड़ धन आवेशित और रेशम का टुकड़ा ऋण आवेशित हो जाता है। जाँच करने पर पता चलता है कि काँच की छड पर धन आवेश की मात्रा रेशम के कपड़े पर ऋण आवेश की मात्रा के ठीक बराबर होती है। इस प्रकार धनावेश एवं ऋणावेश का बीजीय योग शून्य होता है जो वास्तव में रगड़ने के पूर्व था। इसी प्रकार जब एक एबोनाइट की छड़ बिल्ली की खाल से रगड़ी जाती है तो एबोनाइट की छड़ पर ऋण आवेश की मात्रा बिल्ली की खाल पर धन आवेश की मात्रा ठीक बराबर होती है। अतः प्रक्रिया में आवेश की कुल मात्रा शून्य हो जाती है।

आवेश संरक्षण के उदाहरण:- इसका उदाहरण एक इलेक्ट्रॉन तथा एक पॉजिट्रॉन को एक दूसरे के अत्यन्त समीप लाने पर मिलता है। इलेक्ट्रॉन पर ऋण आवेश होता है तथा पॉजिट्रॉन पर ठीक उतना ही धन आवेश होता है। इस प्रकार इन दोनों का कुल आवेश शून्य है। जब ये एक दूसरे के अत्यन्त समीप आते हैं तो परस्पर संयोग करके एक-दूसरे का विनाश कर देते हैं तथा इनके स्थान पर दो गामा-फोटानो (ऊर्जा) की उत्पत्ति हो जाती है। इस प्रकार कुल आवेश अब भी शून्य ही रहता है।

(i) युग्म विलोपन:-  जब एक इलेक्ट्रॉन तथा इसका प्रतिकण एक पॉजिट्रॉन एक दूसरे के अत्यन्त समीप आते हैं तो ये परस्पर संयोग करके एक दूसरे का विनाश कर देते है तथा दो फोटॉन की उत्पत्ति होती है। इस क्रिया में प्रारंभ में कुल आवेश शून्य था तथा अन्त में भी कुल आवेश शून्य है। इस प्रकार इस क्रिया में आवेश संरक्षण नियम का पालन होता है।

e -       +       e+        →         γ + γ (युग्म विलोपन)

(इलेक्ट्रॉन)      (पॉजिट्रॉन)

(ii) न्यूट्रॉन क्षय- n → p + e -

(iii) प्रोटॉन क्षय-  p → n + e+ + ν

(iv) युग्म उत्पादन  γ →  e+ e -

(1.02 MeV)

(v) रेडियोएक्टिव क्षय

92U238                  →          90Th234                   +             2He4

(q=92e)                               (q1= 90e)             +             (q2 = 2e)

इस प्रक्रिया में क्रिया से पूर्व आवेश q= 92e

तथा क्रिया के बाद आवेश 90e + 2e = 92e

इस प्रकार आवेश संरक्षण का रेडियोएक्टिव क्षय एक अच्छा उदाहरण है।

(vi) नाभिकीय अभिक्रिया

7N14   +   2He4   →  9F18   →  8O17    +  1H1

7e      +    2e   →   9e    →  8e      +  e

9e = 9c

आवेश संरक्षण के नियम को व्यापक रूप से निम्नानुसार परिभाषित किया जा सकता है

किसी विलगित निकाय (Isolated System) के अन्दर धनावेशों तथा ऋणावेशों को अलग-अलग करके, जोड़ने व पुनः वितरित करने की प्रत्येक विधि अपनाई जा सकती है क्योंकि विलगित निकाय का कुल आवेश नियत रहता है अर्थात् विलगित निकाय में

यहाँ  वस्तुओं से बने विलगित निकाय की वीं वस्तु पर आवेश का मान qn है।

·         आवेश संरक्षण प्रकृति का एक मौलिक नियम है। इसकी उपस्थिति में निकाय का कुल संवेग तथा कुल ऊर्जा भी संरक्षित रहती है। इस नियम को बेंजामिन फ्रेंकलिन ने ज्ञात किया था। इस नियम का कोई अपवाद नहीं है।

4. विद्युत आवेश का क्वान्टीकरण (Quantization of Electric charge)

किसी वस्तु पर धन अथवा ऋण आवेश, इलेक्ट्रॉनों की कमी अथवा इलेक्ट्रॉनों की अधिकता के कारण होता है अतः किसी वस्तु पर आवेश की मात्रा इलेक्ट्रॉन पर आवेश की मात्रा के पूर्ण गुणज के रूप में ही व्यक्त की जाती है। इस प्रकार आवेश की न्यूनतम मात्रा एक इलेक्ट्रॉन पर आवेश की मात्रा के बराबर होती है तथा किसी वस्तु पर आवेश की मात्रा ± e. ± 2e, ± 3e....... ±ne ही हो सकती है या किसी वस्तु पर आवेश q =±ne जहाँ इलेक्ट्रॉन पर आवेश की मात्रा है इसे आवेश का क्वान्टीकरण कहते हैं आवेश के क्वाण्टीकरण के सिद्धान्त के अनुसार किसी भी वस्तु पर आवेश इलेक्ट्रॉन पर आवेश का पूर्ण गुणज होता है अतः ऐसा आवेश न तो किसी चालक को दिया जा सकता है और न ही लिया जा सकता है जो इलेक्ट्रॉन पर आवेश का पूर्ण गुणज नहीं है इलेक्ट्रॉन पर आवेश की मात्रा 1.6 x 10-19 कूलॉम होती है। इलेक्ट्रॉन पर आवेश का यथार्थ गान = 1.60217733 10-19 कूलॉम होता है, परन्तु गणना में सुविधा की दृष्टि से e = 1.6 x 10-19 कूलॉम लिया जाता है।

यदि किसी वस्तु में n इलेक्ट्रॉन तथा p प्रोटॉन है तो उस वस्तु पर कुल आवेश p x (+e) + n x (-e) = (p - n)e है। यहाँ चूंकि p तथा n पूर्णांक है अतः p – n  भी एक पूर्णांक होगा। इस प्रकार किसी वस्तु पर आवेश सदैव का पूर्णांक गुणज (integral multiple) होता है जिसे e के पदों में ही घटाया अथवा बढ़ाया जा सकता है।

नोट-आवेश के क्याटीकरण की खोज राबर्ट ए मिलिकन ने तेल बूँद प्रयोग से की थी। गैलमान ने सन् 1964 में कुछ ऐसे कणों की पुष्टि की जिन पर आवेश ±e/3  ±2e/3 हो सकता है। इन कणों को क्वार्क कण कहते हैं। इन्हीं से न्यूक्लीऑन की संरचना होती है ये कण छः (u, d, c, s, t, b) होते हैं। u क्वार्क का आवेश 2e/3 व d क्वार्क का आवेश -e/3 होता है। इनकी सैद्धान्तिक पुष्टि नहीं हो पाई है।

सिद्धान्ततः इन कणों की पुष्टि होने पर भी आवेश क्वांटीकरण सिद्धान्त मान्य होगा। आवेश क्वांटीकरण प्रकृति का एक मौलिक नियम है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

1.         1 emu आवेश = 3 x 1010 esu आवेश

अर्थात् आवेश के विद्युत चुम्बकीय मात्रक (emu) तथा स्थिर विद्युत मात्रक(esu) का अनुपात निर्वात् में प्रकाश के वेग के तुल्य होता है अर्थात्

        = 3 x 1010  सेमी/से.

2. आवेश पर चाल का कोई प्रभाव नहीं होता है। किसी आवेशित वस्तु के स्थिर अथवा आपेक्षकीय वेग से गतिमान होने पर वस्तु पर आवेश की मात्रा एक समान रहती है।

3. इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन के आवेश तथा द्रव्यमान

कण

द्रव्यमान

आवेश

इलेक्ट्रॉन

9.109×10-31 kg

- 1.6 x 10-19 कूलॉम

प्रोटॉन

1.672×10-27 kg

+1.6 ×10-19 कूलॉम

न्यूट्रॉन

1.674 x 10-27 kg

शून्य

 

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