Lesson 12 - विद्युत-Class 10 Science Notes

 विद्युत

विद्युत आवेश की संकल्पना:- 

जब एक कांच की छड़ को सिल्क के कपड़े से रगड़ा जाता है, तो इलेक्ट्रॉन कांच की छड़ से सिल्क के कपड़े में चले जाते हैं, इसलिए कांच की छड़ में इलेक्ट्रोनों की कमी हो जाती है जिससे कांच की छड़ धनात्मक आवेशित हो जाती है और सिल्क के कपड़े में इलेक्ट्रोनो की अधिकता हो जाती है जिससे सिल्क का कपड़ा ऋणात्मक आवेशित हो जाता है।

जब एक एबोनाइट की  की छड़ को ऊन से रगड़ा जाता है तो इलेक्ट्रॉन ऊन से एबोनाइट की छड़ में चले जाते हैं।इसलिए एबोनाइट की छड़ में इलेक्ट्रोनों की अधिकता हो जाती है जिससे एबोनाइट की ऋणावेशित हो जाती है। और ऊन में इलेक्ट्रोनों की कमी हो जाती है जिससे ऊन धनवेशित हो जाता है।

अतः घर्षण के इस संकल्पना के आधार पर आवेश को समझा गया। बाद में, कूलाम ने आवेश के बारे और अधिक जानकारी दिया।

आवेश:-     

द्रव्यमान के जैसे, आवेश भी पदार्थ का एक मूलभूत गुण है जिससे पदार्थ विद्युतमय हो जाता है।

इसे q से प्रदर्शित किया जाता है। इसका S.I. मात्रक कूलाम होता है।

 आवेश का मात्रक:-

1. S.I. पद्धति में आवेश का मात्रक 'कूलाम'  होता है।

2. C.G.S. पद्धति में आवेश का मात्रक 'स्टेट कूलाम' होता है।

    1कूलाम = 3 x 10⁹ स्टेट कूलाम 

3. आवेश का सबसे छोटा मात्रक - फ्रैंकलिन

4. आवेश का सबसे बड़ा मात्रक - फैराडे 

            1 फैराडे = 96500 कूलाम 

5. अन्य मात्रक -    

1 mC (मिली कूलाम) = 10-³ C

1 µC (माइक्रो कूलाम) = 10-⁶ C

1 nC (नैनो कूलाम) = 10-⁹ C

1 pC (पीको कूलाम) = 10-¹² C

आवेश के प्रकार:- आवेश दो प्रकार के होते है-

(i) धनात्मक आवेश.

(ii) ऋणात्मक आवेश.

धनात्मक आवेश:- सिल्क के कपड़े से रगड़े जाने पर कांच की छड़ पर उत्पन्न आवेश धनात्मक आवेश कहलाता है।

  • जब पदार्थ से इलेक्ट्रोनों की कमी होती है तो वह धनावेशित हो जाता है।

ऋणात्मक आवेश :- ऊन से रगड़े जाने पर एबोनाइट की छड़ पर उत्पन्न आवेश को ऋणात्मक आवेश  कहलाता है।

  • जब पदार्थ में इलेक्ट्रोनो की अधिकता होती है तो उसे ऋणावेश कहते हैं।

विद्युत आवेश के गुण:-

(i) असमान आवेश एक दूसरे को आकर्षित करते हैं।

(ii) समान आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।

(iii) कुल आवेश संरक्षित रहता है: आवेश संरक्षण के नियम के अनुसार, "किसी विलगित निकाय पर उपस्थित कुल आवेश सदैव संरक्षित रहता है।" 

       इसका अर्थ है, आवेश को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट। इसे सिर्फ एक वस्तु से दूसरे वस्तु पर स्थानांतरित किया जा सकता है।

उदाहरण:- यदि दो पिंड लिया जाए, एक वस्तु पर +10C आवेश हो तथा दूसरा उदासीन ( कोई आवेश नही)। जब हम दोनों पिंडों को एक दूसरे से जोड़ देते हैं तो +5C आवेश दूसरे पिंड पर स्थानांतरित हो जाता है। परंतु कुल आवेश सदैव संरक्षित रहता है।

(iv) आवेश योगात्मक होता है: किसी विलगित निकाय में उपस्थित सभी मूल कणों के आवेशो का बीजगणितीय योग नियत रहता है। 

उदाहरण:- यदि किसी पिंड में +15C धनावेश तथा -10C ऋणावेश हो तो

पिंड पर उपस्थित कुल आवेश = +15C - 10C = + 5C

(v) आवेश क्वांटित होता है: आवेश के क्वांटमीकरण के अनुसार, "किसी पिंड पर उपस्थित विद्युत आवेश उसमें स्थित इलेक्ट्रोनों की संख्या तथा इलेक्ट्रॉन के आवेश के बराबर होता है।'

          q = ne

जहां, q= पिंड पर उपस्थित कुल आवेश

 n = इलेक्ट्रोनों की संख्या तथा

e = एक इलेक्ट्रॉन पर आवेश = 1.6 x 10-¹⁹  C  


Q. 1C आवेश में कितने इलेक्ट्रॉन होते हैं? 

Ans) q= ne

q= 1C

इसलिए, 1 = n x 1.6 x 10-¹⁹

        n = 6.25 x 10¹⁸ इलेक्ट्रॉन

1 कूलाम:-  6.25 x 10¹⁸ इलेक्ट्रोनों पर उपस्थित आवेश की मात्रा 1C होती है।

कूलाम का नियम :- 

फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी चार्ल्स ऑगस्टिन डी कूलाम ने दो आवेशो के बीच लगने वाले बल के लिए एक गणितीय संबंध दिया-

 कूलाम के नियम के अनुसार, "दो आवेशो के मध्य लगने वाला बल दोनों आवेशो के परिमाण के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

माना दो आवेश q1 तथा q2 एक दूसरे से r दूरी पर रखे हैं तब

जहां K समानुपाती नियतांक है इसे कूलाम नियतांक कहते हैं।

               K= 9 × 10⁹  N-m2/C2 

इस नियम को व्युत्क्रम वर्ग नियम कहते हैं। 


विद्युत धारा को प्रवाह के आधार पर पदार्थ के प्रकार:- 

विद्युत धारा प्रवाह के आधार पर पदार्थ दो प्रकार के होते हैं -

(i) सुचालक (Conductors)

(ii) कुचालक (Insulators)

सुचालक:- वे पदार्थ जिनसे विद्युत धारा आसानी से प्रवाहित होती है, सुचालक कहलाते हैं। इनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं।

उदाहरण:- कॉपर (Cu), एल्यूमीनियम (Al), लोहा (Fe) आदि।

कुचालक:- वे पदार्थ जिनसे होकर विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होती है, कुचालक कहलाते हैं। इनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं।

उदाहरण:-  कांच, लकड़ी, रबर आदि।

  • वे पदार्थ जिनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं अच्छे सुचालक कहलाते हैं जबकि वे पदार्थ जिनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं कुचालक कहलाते हैं।

सुचालक तथा कुचालक में अंतर:-    

सुचालक

1. सुचालक में विद्युत धारा प्रवाहित होती है।           

2. इलेक्ट्रॉन आसानी से प्रवाहित होते हैं।

3. चालकता अधिक होती है।   

4. प्रतिरोध कम होता है।

5. ऊष्मा चालन की दर अधिक होती है।           

 कुचालक 

 1. कुचालक में विद्युत धारा प्रवाहित होती है। 

2. इलेक्ट्रॉन आसानी से प्रवाहित नहीं होते हैं। 

3. चालकता कम या शून्य होती है। 

4. प्रतिरोध अधिक होता है।

5. ऊष्मा स्थानांतरण की दर कम होती है। 

विद्युत के प्रकार:- 

विद्युत दो प्रकार के होते हैं -

1. स्थैतिक विद्युत (Static electricity)

2. धारा विद्युत (Current electricity)

स्थैतिक विद्युत:- जब विद्युत आवेश उत्पन्न तो होते हैं लेकिन प्रवाहित नहीं होते तो इस प्रकार के विद्युत को स्थैतिक विद्युत कहते हैं। 

उदाहरण:- कांच की छड़ को सिल्क से रगड़ने पर छड़ पर उत्पन्न आवेश तथा इबोनाइट की छड़ को ऊन से रगड़ने पर उत्पन्न आवेश।

धारा विद्युत:- जब विद्युत आवेश उत्पन्न होते हैं तथा प्रवाहित भी होते हैं तो इस प्रकार के विद्युत को धारा विद्युत कहते हैं। 

उदाहरण:- हमारे घरों में आने वाली विद्युत 

विद्युत धारा:- किसी चालक में प्रवाहित होने वाले आवेश प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं। इसे I से प्रदर्शित किया जाता है। इसका S.I. मात्रक एम्पियर होता है।

       I=q/t

जहां, I = चालक में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा

            q = चालक में प्रवाहित होने वाला आवेश

            t = आवेश प्रवाह का समय

1Ampere:- हम जानते है, किसी चालक में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा,

         I=q/t

      1A=1C/1sec

अतः यदि किसी चालक से 1 सेकंड में 1 कूलाम आवेश प्रवाहित हो तो उसमे बहने वाली विद्युत धारा 1 एम्पियर होती है। 

विद्युत धारा के अन्य छोटे मात्रक:-  विद्युत धारा के अन्य छोटे मात्रक मिली एम्पियर तथा माइक्रो एम्पियर होता है।  मिली एम्पियर को mA se तथा माइक्रो एम्पियर को µA से प्रदर्शित किया जाता है।

1 mA (मिली एम्पियर) = 10-³ A

1 µA (माइक्रो एम्पियर) = 10-⁶ A

1 nA (नैनो एम्पियर) = 10-⁹ A

1 pA (पीको एम्पियर) = 10-¹² 

एमीटर:- एमीटर वह यंत्र है जो विद्युत धारा मापने में प्रयोग किया जाता है।

परिपथ में एमीटर श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है। इसका प्रतिरोध कम होता है और श्रेणीक्रम में विद्युत धारा समान रहती है।

विद्युत क्षेत्र:- 

 विद्युत आवेश के चारों ओर का वह क्षेत्र जहां इसका प्रभाव महसूस किया जा सके, विद्युत क्षेत्र कहलाता है।

विद्युत विभव :-

किसी आवेश को अनंत से विद्युत क्षेत्र के अंदर किसी बिंदु तक लाने में किए गए कार्य को विद्युत विभव कहते हैं।
उदाहरण:- माना कोई एकांक आवेश जो अनंत पर बिंदु 'A' पर रखा है। इसे किसी अन्य आवेश q के क्षेत्र में बिंदु 'B' तक लाया जाता है। अतः इसे लाने में किए गए कार्य को विद्युत विभव कहते हैं।

विभवांतर:-

किसी एक निश्चित बिंदु से दूसरे निश्चित बिंदु तक किसी आवेश को ले जाने में किए गए कार्य को विभवांतर कहते हैं।

                        V=W/q

जहां, V = विद्युत विभव

            W = किया गया कार्य

            q = आवेश

इसका S.I. मात्रक 'वोल्ट' होता है।

1 वोल्ट:- 

हम जानते हैं कि, विद्युत विभवांतर, V=W/q

        1वोल्ट=जूल/1कूलाम 

अतः, 1 C आवेश को किसी बिंदु से विद्युत क्षेत्र के अंदर किसी अन्य बिंदु तक लाने में किया गया कार्य यदि 1 जूल हो तो दोनों बिंदुओं के बीच विभवांतर 1 वोल्ट होगा। 

वोल्टमीटर:- वोल्टमीटर एक यंत्र है जो विद्युत विभवांतर मापने में प्रयोग किया जाता है।

यह किसी परिपथ में समांतर क्रम में जोड़ा जाता है। इसका प्रतिरोध उच्च होता है तथा समांतर क्रम में विद्युत विभवांतर समान रहता है।

सेल:- सेल वह साधारण यंत्र है जो विद्युत विभवांतर बनाए रखने में सहायता करता है।

 विद्युत धारा सदैव उच्च विभव से निम्न विभव की ओर बहता है।

विद्युत परिपथ :-

वह सुचालक पथ जिसपर विद्युत विभवांतर लगाने पर विद्युत धारा प्रवाहित होती है।

विद्युत परिपथ के प्रकार:-

विद्युत परिपथ दो प्रकार के होते हैं -

(i) बंद विद्युत परिपथ (Closed electric circuit)

(ii) खुला विद्युत परिपथ (Open electric circuit)

(i) बंद विद्युत परिपथ:- वह परिपथ जिसमें सभी अवयव एक साथ इस प्रकार जुड़े होते हैं कि उनमें लगातार विद्युत धारा प्रवाहित हो सके, बंद विद्युत परिपथ कहलाता है।

(ii) खुला विद्युत परिपथ:- वह परिपथ जो किसी बिंदु पर टूटा हुआ रहता है जिससे अवयवों में विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होती है, खुला विद्युत परिपथ कहलाता है।

गैलवेनोमीटर:- वह यंत्र है, जो बहुत सूक्ष्म विद्युत धारा मापने या विद्युत धारा के संसूचन के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका प्रतिरोध बहुत कम होता है।

विद्युत परिपथ डायग्राम:-

विद्युत सेल, कुंजी, विद्युत अवयव तथा चालक तारों की सहायता से बनाया जाता है।

विद्युत परिपथ डायग्राम में प्रयोग होने वाले प्रतीक:-












ओम का नियम:-

यह जॉर्ज साइमन ओम द्वारा प्रयोगों के आधार पर दिया गया एक सामान्य संबंध है।
       इस नियम के अनुसार, "नियत ताप पर, किसी परिपथ में बहने वाली धारा उसके सिरों पर लगाए गए विद्युत विभवांतर के समानुपाती होती है।"
     माना किसी परिपथ के सिरों पर विद्युत विभवांतर 'V' तथा उसमें विद्युत धारा 'I' प्रवाहित हो रही है, तो


जहां R समानुपाती नियतांक है इसे प्रतिरोध कहते हैं।

प्रतिरोध:-

किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाह का विरोध करने के गुण को प्रतिरोध कहते हैं।

इसे R से प्रदर्शित करते हैं। इसका S.I. मात्रक ओम (Ω) होता है।

1 ओम:-  ओम के नियम से,

                R = V/I

               1 Ω = 1 V/ 1 A

अतः, किसी चालक के सिरों पर लगाया गया विभवांतर 1 V तथा उसमें प्रवाहित विद्युत धारा 1A हो तो उसका प्रतिरोध 1ओम होगा।

परिवर्ती प्रतिरोध:-

विद्युत परिपथ का वह अवयव जो विद्युत विभव के बदले बिना विद्युत धारा को  नियंत्रित करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

धारा नियंत्रक:- 

वह यंत्र जो किसी परिपथ में विभव बदले बिना परिवर्ती प्रतिरोध लगाता है।

प्रतिरोध को प्रभावित करने वाले कारक:-

किसी धात्विक चालक का प्रतिरोध-

(i) चालक की लंबाई के अनुक्रमानुपाती होता है। 


------------(i)

(ii) अनुप्रस्थ परिच्छेद के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है। 


------------(ii)


(iii) ताप के अनुक्रमानुपाती होता है। 

(iv) चालक के धातु की प्रकृति पर निर्भर करता है।

      समी. (i) तथा (ii) से,





-----------(iii)

जहां ρ समानुपाती नियतांक है। इसे चालक की विद्युत प्रतिरोधकता कहते हैं। इसका S.I. मात्रक ओम-मीटर होता है।

प्रतिरोधकता या विशिष्ट प्रतिरोध:-

समी. (iii)  से,

            यदि l=1m और A=1m²

                तो R=ρ 

अतः,  विशिष्ट प्रतिरोध 1m लंबे तथा 1m² अनुप्रस्थ परिच्छद  के क्षेत्रफल वाले तार के प्रतिरोध के बराबर होता है। 

  • प्रतिरोधकता चालक की लंबाई या क्षेत्रफल में परिवर्तन होने पर नहीं बदलता लेकिन यह तापमान परिवर्तन होने पर बदलता है।
  • धातुओं और मिश्र धातुओं की प्रतिरोधकता 10-⁸ से 10-⁶ Ωm होती है।
  • कुचालक की प्रतिरोधकता 10¹² से 10¹⁷ Ωm
  • मिश्र धातुओं की प्रतिरोधकता सामान्यतः उसके अवयवी धातुओं से अधिक होती है।
  • मिश्र धातु उच्च ताप पर अक्सीकृत (जलता) आसानी से नहीं जलते है, इसीलिए ये विद्युत ऊष्मक यंत्र के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।
  • कॉपर तथा एल्युमिनियम विद्युत संचार तार के रूप में प्रयोग किए जाते हैं क्योंकि इनकी प्रतिरोधकता काम होती है।

प्रतिरोधों का संयोजन:-

प्रतिरोधों को दो प्रकार से संयोजित किया जा सकता है-

(i) श्रेणी क्रम संयोजन (Series combination)

(ii) समांतर क्रम संयोजन (Parallel combination)

श्रेणी क्रम संयोजन:- जब प्रतिरोधों को उनके एक सिरे से दूसरे सिरे को जोड़ते हैं तो इसे श्रेणी क्रम संयोजन कहते हैं। इस क्रम में कुल प्रतिरोध अलग अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है। 

श्रेणी क्रम में, विद्युत धारा नियत तथा विद्युत विभव अलग अलग होता है। 

    माना तीन प्रतिरोध R1, R2 और R3 श्रेणी क्रम में जुड़े हैं।

 A और B पर उत्पन्न विभवांतर= V

 R1, R2 और R3 प्रतिरोधों पर उत्पन विभवांतर= V1, V2 और V3

परिपथ में बहने वाली धारा = I

हम जानते हैं कि,

V= V1 + V2 + V3 -------------(i)

ओम के नियम से :

V1 = IR1 -------------(ii)

V2 = IR2 ---------------(iii)

V3 = IR3 -------------(iv)

माना, तुल्य प्रतिरोध = R

तो, V = IR -------------(v)

समी. (ii), (iii), (iv) और (v) से समी. (i) में मान रखने पर,

IR = IR1 + IR2 + IR3

R = R1 + R2 + R3

अतः, श्रेणी क्रम संयोजन में, "किसी परिपथ का तुल्य प्रतिरोध उस परिपथ में जुड़े अलग अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।" 

समांतर क्रम संयोजन:- समांतर क्रम संयोजन में सभी प्रतिरोधों के एक सिरे को विद्युत स्रोत के एक टर्मिनल से तथा दूसरे सिरे को दूसरे टर्मिनल से जोड़ा जाता है।

   समांतर क्रम संयोजन में, परिपथ के तुल्य प्रतिरोध का व्युतक्रम परिपथ में लगे सभी प्रतिरोधों के व्युतक्रम के योग के बराबर होता है।

     समांतर क्रम में, विद्युत विभवांतर नियत तथा विद्युत धारा अलग अलग होता है।

माना तीन प्रतिरोध  R1, R2 और R3 एक दूसरे से समांतर क्रम में संयोजित है। 

बिंदु A और B के बीच विद्युत विभवांतर= V

बिंदु A और B के बीच बहने वाली विद्युत धारा = I

प्रतिरोध R1, R2 और R3 से बहने वाली विद्युत धारा क्रमशः I1, I2 और I3 हैं।

हम जानते हैं कि,

I = I1 + I2 + I3 ------------(i)

पतिरोध R1, R2, और R3 पर समान विद्युत विभव = V

ओम के नियम से,

अतः, समांतर क्रम संयोजन में, "परिपथ के तुल्य प्रतिरोध का व्युतक्रम परिपथ में जुड़े सभी प्रतिरोधों के व्युतक्रम के योग के बराबर होता है।"

श्रेणी क्रम संयोजन पर समांतर क्रम संयोजन के लाभ:-

(i) श्रेणीक्रम संयोजन में यदि एक अवयव खराब होता है तो पूरा परिपथ खुला परिपथ हो जाता है और कोई भी अवयव कार्य नहीं करता।  

(ii) विभिन्न यंत्र, विभिन्न विद्युत धारा पर कार्य करते हैं, जो कि समांतर क्रम में अलग अलग होता है परंतु श्रेणीक्रम समान होता है।

(iii) समांतर क्रम में तुल्य प्रतिरोध कम जबकि श्रेणी क्रम में अधिक होता है। 

विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव:-

जब शुद्ध प्रतिरोधी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उसमें विद्युत धारा ऊष्मा के रूप में फैल जाता है जिससे चालक गर्म हो जाता है। विद्युत धारा प्रवाह से प्रतिरोधी चालक का गर्म हो जाना, विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव कहलाता है।

उदाहरण:- जब किसी बल्ब को विद्युत ऊर्जा दी जाती है। तो बल्ब का फिलामेंट गर्म हो जाता है, जिससे यह प्रकाश देता है। विद्युत बल्ब का गर्म होना विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव है।

विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव का कारण:-

विद्युत धारा जिस चालक में बहती है उसमें उत्पन्न प्रतिरोध को कम करने के लिए ऊष्मा उत्पन्न करती है। प्रतिरोध जितना अधिक होगा विद्युत धारा उतना अधिक ऊष्मा उत्पन्न करेगी।  अतः किसी चालक से गुजरते समय विद्युत धारा द्वारा ऊष्मा का उत्पन्न होना एक निश्चित परिणाम है।

        विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव का उपयोग विद्युत इस्तरी, विद्युत हीटर, विद्युत गीजर आदि में होता है।

विद्युत ऊष्मक यंत्रों में नाइक्रोम प्रयोग होता है क्योंकि

  • इसका प्रतिरोध उच्च होता है।
  • सामान्यतः यह उच्च ताप पर पिघलता नहीं है।
  • इसका रेखीय प्रसार गुणांक अधिक होता है।

जुल का ऊष्मा का नियम:- 

माना R प्रतिरोध वाले प्रतिरोधक में I विद्युत धारा प्रवाहित होती है।

प्रतिरोधक के सिरों पर उत्पन्न विद्युत विभवांतर = V

परिपथ से t समय में Q आवेश प्रवाहित होता है

विभावांतर V में Q आवेश प्रवाहित करने में किया गया कार्य,

W = V × Q

चूंकि t समय में Q आवेश प्रवाहित होता है।

इसलिए शक्ति,

P = W/t.                                  …..(i)

समी. (i) में W=VQ रखने पर, 

P = VQ/t                                     ...…(ii)

हम जानते हैं, विद्युत धारा, I = Q/t

i.e., P = VI

Since, the electric energy is supplied for time t, thus

P × t = VI × t = VIt ……(iii)

H = VIt                               { H=P × t }

H = I²Rt               { ओम के नियम से, V = IR } 

H = V²t/R            { ओम के नियम से, I = V/R}

अतः जूल के नियम के अनुसार,

(i) प्रतिरोधक में उत्पन्न ऊष्मा विद्युत धारा के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होता है।   

(ii) उत्पन्न ऊष्मा चालक के प्रतिरोध के अनुक्रमानुपाती होता है। 

(iii) उत्पन्न ऊष्मा विद्युत धारा प्रवाह के समय के अनुमक्रमानुपाती होता है। 

विद्युत शक्ति:-

ऊर्जा क्षय या खर्च होने की दर को विद्युत शक्ति कहते हैं।

या एकांक समय में किए गए कार्य को शक्ति कहते हैं।

P = W/t

हम जानते हैं कि , W = V × Q

P = V×Q/t

हम जानते हैं कि, विद्युत धारा, I = Q/t

अतः, P = VI 

P = I²R                  { ओम के नियम से, V = IR } 

P = V²/R                { ओम के नियम से, I = V/R}

शक्ति का मात्रक:-

शक्ति का SI मात्रक वॉट या जूल/सेकंड होता है।
अन्य मात्रक-

          किलोवाट=1000 वॉट  =10³ वॉट

          मेगावाट=1000000 वॉट = 10⁶ वॉट

          गीगावाट=1000000000 वॉट = 10⁹ वॉट

        अश्वशक्ति =746 वॉट                            

विद्युत ऊर्जा का व्यावसायिक मात्रक:- विद्युत ऊर्जा का व्यावसायिक मात्रक किलोवाट घंटा (KWH). इसे यूनिट भी बोलते हैं। इसे घरेलू विद्युत के मापन में प्रयोग किया जाता है।

1 यूनिट = 1 KWH

1 यूनिट = 1000 W × 3600 sec

1 यूनिट = 3.6 ×10⁶ जुल

यूनिटों की संख्या = शक्ति ( वॉट में) × समय ( घंटे में)/1000

विद्युत बल्ब:- 

विद्युत बल्ब में बल्ब का फिलामेंट विद्युत के उष्मीय प्रभाव के कारण प्रकाश देता है। बल्ब का फिलामेंट टंगस्टन का बना होता है क्योंकि इसका गलनांक उच्च 3380°C होता है। ऊष्मा उत्पन्न करने के लिए इसका प्रतिरोध उच्च होता है और आसानी से इसका पतला तार बनाया जा सकता है। 

विद्युत फ्यूज :-

यह एक सुरक्षा युक्ति है जो हमे आग लगने से बचाती है। इसमें दो टर्मिनल T1 तथा T2 होते हैं जो फ्यूज तार से जुड़े होते हैं। फ्यूज तार का गलनांक बहुत कम होता है। यह लेड (Pb, सीसा) और टीन (Sn) के मिश्र धातु का बना होता है।

यह दो स्थितियों में कार्य करता है:

ओवरलोडिंग: जब एक साथ कई विद्युत यंत्र चलाए जाते हैं तो वे बहुत अधिक मात्रा में विद्युत धारा खींचते हैं जिससे बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है जो आग लगने का कारण हो सकता है।

शॉर्ट सर्किट: जब लाइव वायर और न्यूट्रल वायर एक-दूसरे को छूते हैं, तो विद्युत धारा सामान्य मान से अधिक हो जाता है और इससे आग भी लग सकती है।

इन दोनो स्थितियों में, जब विद्युत धारा सामान्य मान से अधिक हो जाता है तो बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है इससे फ्यूज तार पिघल जाता है।



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